ज्ञान वर्धक कहानी एक ब्राह्मण को विवाह के बहुत सालों बाद पुत्र हुआ लेकिन कुछ महीनों बाद बालक की असमय मृत्यु हो गई
ब्राह्मण शव लेकर श्मशान पहुँचा। वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था।
श्मशान में एक गिद्ध और एक सियार रहते थे। दोनों शव देखकर बड़े खुश हुए। दोनों ने प्रचलित व्यवस्था बना रखी थी - दिन में सियार माँस नहीं खाएगा और रात में गिद्ध।
सियार ने सोचा - यदि ब्राह्मण दिन में ही शव रखकर चला गया तो उस पर गिद्ध का अधिकार होगा। इसलिए क्यों न अंधेरा होने तक ब्राह्मण को बातों में फँसाकर रखा जाए।
वहीं गिद्ध ताक में था कि शव के साथ आए कुटुंब के लोग जल्द से जल्द जाएँ और वह उसे खा सके।
गिद्ध ब्राह्मण के पास गया और उससे वैराग्य की बातें शुरू की।
गिद्ध ने कहा - मनुष्यों, आपके दुख का कारण यही मोहमाया ही है। संसार में आने से पहले हर प्राणी का आयु तय हो जाती है। संयोग और वियोग प्रकृति के नियम हैं।
आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सकते। इसलिए शोक त्यागकर प्रस्थान करें। संध्या होने वाली है। संध्याकाल में श्मशान प्राणियों के लिए भयदायक होता है,
गिद्ध की बातें ब्राह्मण के साथ आए रिश्तेदारों आ गये,वे ब्राह्मण से बोले बालक के जीवित होने की आशा नहीं है। इसलिए यहाँ रुकने का क्या लाभ?
सियार सब सुन रहा था। उसे गिद्ध की चाल सफल होती दिखी तो भागकर ब्राह्मण के पास आया।
सियार कहने लगा - बड़े निर्दयी हो। जिससे प्रेम करते थे, उसके मृत-देह के साथ थोड़ा वक्त नहीं बिता सकते!! कम से कम संध्या तक तो रुको,
सियार की बातों से परिजनों को कुछ तसल्ली हुई और उन्होंने तुरंत वापस लौटने का विचार छोड़ा।
अब गिद्ध को परेशानी होने लगी। उसने कहना शुरू किया - तुम ज्ञानी होने के बावजूद एक कपटी सियार की बातों में आ गए। एक दिन हर प्राणी की यही दशा होनी है। शोक त्यागकर अपने-अपने घर को जाओ। जन्म है तो मरण भी सत्य है,क्रिया करो और घर जाओ,
लोग चलने को हुए तो सियार फिर शुरू हो गया - यह बालक जीवित होता तो क्या तुम्हारा वंश न बढ़ाता? कुल का सूर्य अस्त हुआ है कम से कम सूर्यास्त तक तो रुको!
अब गिद्ध को चिंता हुई। गिद्ध ने कहा - मेरी आयु सौ वर्ष की है। मैंने आज तक किसी को जीवित होते नहीं देखा। तुम्हें शीघ्र जाकर इसके मोक्ष का क्रिया आरंभ करना चाहिए।
सियार ने कहना शुरू किया - जब तक सूर्य आकाश में विराजमान हैं, दैवीय चमत्कार हो सकते हैं। रात्रि में आसुरी शक्तियाँ प्रबल होती हैं। मेरा सुझाव है थोड़ी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए।
सियार और गिद्ध की चालाकी में फँसा ब्राह्मण परिवार तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करना चाहिए। अंततः पिता ने बेटे का सिर में गोद में रखा और ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसके विलाप से श्मशान काँपने लगा।
तभी संध्या-भ्रमण पर निकले महादेव-पार्वती वहाँ पहुँचे। पार्वती जी ने बिलखते परिजनों को देखा तो दुखी हो गईं। उन्होंने महादेव से बालक को जीवित करने का अनुरोध किया।
महादेव प्रकट हुए और उन्होंने बालक को सौ वर्ष की आयु दे दी। गिद्ध और सियार दोनों ठगे रह गए।
.
गिद्ध और सियार के लिए आकाशवाणी हुई - तुमने प्राणियों को उपदेश तो दिया उसमें सांत्वना की बजाय तुम्हारा स्वार्थ निहीत था। इसलिए तुम्हें इस निकृष्ट योनि से शीघ्र मुक्ति नहीं मिलेगी।
दूसरों के कष्ट दुख पर सच्चे मन से शोक करना चाहिए। शोक का आडंबर करके प्रकट की गई संवेदना से गिद्ध और सियार की गति प्राप्त होती।
रही भोजन प्राप्ति की बात जो पैदा हुआ है,उसको भोजन जरूर मिलता है, सुनो,
एक महात्मा एक जगह बैठा था.
पास से एक बैल गाड़ी गुजरी जिससे एक गेहूं की बोरी नीचे गिर गई और फट गई और बाहर गेहूं के दाने गिर गये.
महात्मा बैठकर देख ही रहा, एक कौआ आया अपने पेट के अनुसार कुछ दाने खाये और उड़ गया.
कुछ समय बाद एक गाय आई उसने भी भर पेट खाया और चली गई.
बाद में एक आदमी आया उसने वो बोरी ही पीठ पर उठा ली और अपने घर लेकर चला गया.
सोचने वाली बात है उन पशु पक्षी को ये समझ में आ गया कि जिस मालिक ने उन्हें यहां भेजा है वो हर रोज उन्हें भर पेट देता है पर मनुष्य को यह छोटी सी बात क्यों नहीं समझ में आ रही.
हम दिन रात सिर्फ माया ही कमाने के पीछे लगे पडे़ हैं पर हमारी भूख है की कभी खत्म ही नहीं होती.
हमें क्यों उस मालिक पर विश्वास नहीं है,
#Dosti
#Means
#Friendship
#दोस्ती
ब्राह्मण शव लेकर श्मशान पहुँचा। वह मोहवश उसे दफना नहीं पा रहा था।
श्मशान में एक गिद्ध और एक सियार रहते थे। दोनों शव देखकर बड़े खुश हुए। दोनों ने प्रचलित व्यवस्था बना रखी थी - दिन में सियार माँस नहीं खाएगा और रात में गिद्ध।
सियार ने सोचा - यदि ब्राह्मण दिन में ही शव रखकर चला गया तो उस पर गिद्ध का अधिकार होगा। इसलिए क्यों न अंधेरा होने तक ब्राह्मण को बातों में फँसाकर रखा जाए।
वहीं गिद्ध ताक में था कि शव के साथ आए कुटुंब के लोग जल्द से जल्द जाएँ और वह उसे खा सके।
गिद्ध ब्राह्मण के पास गया और उससे वैराग्य की बातें शुरू की।
गिद्ध ने कहा - मनुष्यों, आपके दुख का कारण यही मोहमाया ही है। संसार में आने से पहले हर प्राणी का आयु तय हो जाती है। संयोग और वियोग प्रकृति के नियम हैं।
आप अपने पुत्र को वापस नहीं ला सकते। इसलिए शोक त्यागकर प्रस्थान करें। संध्या होने वाली है। संध्याकाल में श्मशान प्राणियों के लिए भयदायक होता है,
गिद्ध की बातें ब्राह्मण के साथ आए रिश्तेदारों आ गये,वे ब्राह्मण से बोले बालक के जीवित होने की आशा नहीं है। इसलिए यहाँ रुकने का क्या लाभ?
सियार सब सुन रहा था। उसे गिद्ध की चाल सफल होती दिखी तो भागकर ब्राह्मण के पास आया।
सियार कहने लगा - बड़े निर्दयी हो। जिससे प्रेम करते थे, उसके मृत-देह के साथ थोड़ा वक्त नहीं बिता सकते!! कम से कम संध्या तक तो रुको,
सियार की बातों से परिजनों को कुछ तसल्ली हुई और उन्होंने तुरंत वापस लौटने का विचार छोड़ा।
अब गिद्ध को परेशानी होने लगी। उसने कहना शुरू किया - तुम ज्ञानी होने के बावजूद एक कपटी सियार की बातों में आ गए। एक दिन हर प्राणी की यही दशा होनी है। शोक त्यागकर अपने-अपने घर को जाओ। जन्म है तो मरण भी सत्य है,क्रिया करो और घर जाओ,
लोग चलने को हुए तो सियार फिर शुरू हो गया - यह बालक जीवित होता तो क्या तुम्हारा वंश न बढ़ाता? कुल का सूर्य अस्त हुआ है कम से कम सूर्यास्त तक तो रुको!
अब गिद्ध को चिंता हुई। गिद्ध ने कहा - मेरी आयु सौ वर्ष की है। मैंने आज तक किसी को जीवित होते नहीं देखा। तुम्हें शीघ्र जाकर इसके मोक्ष का क्रिया आरंभ करना चाहिए।
सियार ने कहना शुरू किया - जब तक सूर्य आकाश में विराजमान हैं, दैवीय चमत्कार हो सकते हैं। रात्रि में आसुरी शक्तियाँ प्रबल होती हैं। मेरा सुझाव है थोड़ी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए।
सियार और गिद्ध की चालाकी में फँसा ब्राह्मण परिवार तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करना चाहिए। अंततः पिता ने बेटे का सिर में गोद में रखा और ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसके विलाप से श्मशान काँपने लगा।
तभी संध्या-भ्रमण पर निकले महादेव-पार्वती वहाँ पहुँचे। पार्वती जी ने बिलखते परिजनों को देखा तो दुखी हो गईं। उन्होंने महादेव से बालक को जीवित करने का अनुरोध किया।
महादेव प्रकट हुए और उन्होंने बालक को सौ वर्ष की आयु दे दी। गिद्ध और सियार दोनों ठगे रह गए।
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