थोड़ा तर्क शक्ति का इस्तेमाल कर नीचे लिखी हुई बातों पर ध्यान दें और अपना विवेक इस्तेमाल करें*
https://goo.gl/oBkupJ
चीन के सबसे अमीर व्यक्ति जैक मा कहते है -
यदि आप बंदर के सामने केले और बहुत सारे पैसे रखेंगे तो बंदर केले उठाएगा पैसे नही क्योकि वह नही जानता है की पैसो से बहुत सारे केले खरीदे जा सकते है ।
उसी प्रकार आज यदि वास्तविकता मे भारत की जनता को निजी हित निजी स्वार्थ पूरे करने और राष्ट्रीय सुरक्षा मे सेे एक का विकल्प चयन करने का कहें तो वो निजी स्वार्थ ही चयन करेंगे।
क्योकी वो नही समझ पा रहे है की राष्ट्र सुरक्षित नही रहा तो फिर निजी हितो की गठरी बाँध के कहा ले जाऐंगे।🤔😇😇
Read Carefully :
*1*."डिजिटल इंडिया" का अगुवा रिलायंस - "जियो" बना, जबकि मौका बीएसएनएल / एमटीएनएल के पास पूरा था...!
*2.*कैशलेस इकोनॉमी का अवतार एनपीसीआई के "रुपए" को बनना चाहिए था... लेकिन बाज़ी सीधे-सीधे "पे-टीएम" के हाथ लगने दी गई...!
*3.*फ्राँस के रफेल फ़ाइटर जेट का भारतीय पार्टनर हिंदुस्तान एरोनौटिक्स लिमिटेड को होना चाहिए... लेकिन ऑर्डर मिला रिलायंस - "पिपावा डिफेंस"...!
*4*.भारतीय रेल को डीज़ल सप्लाई का ठेका इंडियन ऑइल कार्पोरेशन को मिलना चाहिए था लेकिन मिला रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स को..!
*5.*ऑस्ट्रेलिया की खानों के टेंडर में सरकार चाहती तो "एमएमटीसी" की बेंक गारंटी एसबीआई के जरिये दे सकती थी... लेकिन मिला अडानी ग्रुप को...!
*6.*सरकारी संस्थानों को जान-बूझकर प्राइवेट कंपनियों का पिछलग्गू बनाकर किसे फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है...?
*7.*अब.अगर फ़िस्क़ल और मॉनेटरी पाॅलिसीज़ में चेंजेज़ आ ही रहे हैं, तो इसका मुनाफ़ा सरकारी उपक्रमों को मिलने के बजाय निजी हाथों में क्यों दे रहे रहो...?
सुनो, राजनीति और राष्ट्रहित कभी एक नहीं हो सकते...
देशप्रेम और किसी व्यक्ति-विशेष का चारित्रिक पूजन करने में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है.. इस फ़र्क़ को समझना ज़रूरी है और असलियत के धरातल में रहना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है...
जी-हुज़ूरी करना इसलिए भी ग़लत होता है क्योंकि वो आपसे आपका सवाल पूछने का अधिकार छीन लेता है...
https://goo.gl/oBkupJ
कृपया तथ्यपरक विचारों के साथ तर्क वितर्क करें.........
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चीन के सबसे अमीर व्यक्ति जैक मा कहते है -
यदि आप बंदर के सामने केले और बहुत सारे पैसे रखेंगे तो बंदर केले उठाएगा पैसे नही क्योकि वह नही जानता है की पैसो से बहुत सारे केले खरीदे जा सकते है ।
उसी प्रकार आज यदि वास्तविकता मे भारत की जनता को निजी हित निजी स्वार्थ पूरे करने और राष्ट्रीय सुरक्षा मे सेे एक का विकल्प चयन करने का कहें तो वो निजी स्वार्थ ही चयन करेंगे।
क्योकी वो नही समझ पा रहे है की राष्ट्र सुरक्षित नही रहा तो फिर निजी हितो की गठरी बाँध के कहा ले जाऐंगे।🤔😇😇
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*1*."डिजिटल इंडिया" का अगुवा रिलायंस - "जियो" बना, जबकि मौका बीएसएनएल / एमटीएनएल के पास पूरा था...!
*2.*कैशलेस इकोनॉमी का अवतार एनपीसीआई के "रुपए" को बनना चाहिए था... लेकिन बाज़ी सीधे-सीधे "पे-टीएम" के हाथ लगने दी गई...!
*3.*फ्राँस के रफेल फ़ाइटर जेट का भारतीय पार्टनर हिंदुस्तान एरोनौटिक्स लिमिटेड को होना चाहिए... लेकिन ऑर्डर मिला रिलायंस - "पिपावा डिफेंस"...!
*4*.भारतीय रेल को डीज़ल सप्लाई का ठेका इंडियन ऑइल कार्पोरेशन को मिलना चाहिए था लेकिन मिला रिलायंस पेट्रोकेमिकल्स को..!
*5.*ऑस्ट्रेलिया की खानों के टेंडर में सरकार चाहती तो "एमएमटीसी" की बेंक गारंटी एसबीआई के जरिये दे सकती थी... लेकिन मिला अडानी ग्रुप को...!
*6.*सरकारी संस्थानों को जान-बूझकर प्राइवेट कंपनियों का पिछलग्गू बनाकर किसे फ़ायदा पहुँचाया जा रहा है...?
*7.*अब.अगर फ़िस्क़ल और मॉनेटरी पाॅलिसीज़ में चेंजेज़ आ ही रहे हैं, तो इसका मुनाफ़ा सरकारी उपक्रमों को मिलने के बजाय निजी हाथों में क्यों दे रहे रहो...?
सुनो, राजनीति और राष्ट्रहित कभी एक नहीं हो सकते...
देशप्रेम और किसी व्यक्ति-विशेष का चारित्रिक पूजन करने में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ है.. इस फ़र्क़ को समझना ज़रूरी है और असलियत के धरातल में रहना उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है...
जी-हुज़ूरी करना इसलिए भी ग़लत होता है क्योंकि वो आपसे आपका सवाल पूछने का अधिकार छीन लेता है...
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कृपया तथ्यपरक विचारों के साथ तर्क वितर्क करें.........
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