बन्दा पहले IIT से इंजीनियरिंग करता है, नही रुकता, फिर IRS का इम्तेहान पास करके दिल्ली का रेवेन्यू कमिश्नर बनता है, चाहता तो वहीं करोड़ों अरबों बना लेता जैसी दिल्ली की अर्थव्यवस्था है। लेकिन ये क्या, नौकरी के साथ साथ सामाजिक कामों में लगा रहा, लोगों को सरकारी कामों में आने वाली अड़चनों का समाधान करवाता रहा, फिर RTI के लिए लंबा संघर्ष किया जहां उसे साथ मिला एक्टिविस्ट अरुणा रॉय का, लंबी लड़ाई के बाद RTI लागू हो गया, जिसके लिए उसे मैगसेसे अवार्ड मिला, और इनाम में मिली रकम से एक संस्था बना दी जो भ्रष्टाचार उन्मूलन और RTI के काम करती थी।
RTI की बदौलत कांग्रेस के घोटाले उखाड़े जिनका नाम लेकर मोदी जैसों ने बड़े मंच पर अपनी राजनीति शुरू की।
कोई VIP नही था, कोई Z+ सुरक्षा नही थी, लेकिन मगरमच्छों से लड़ता रहा। ना अपनी परवाह की ना अपने परिवार की।
किसके लिए? देश के लिए।
संघर्ष यहीं नही रुका, बड़ा आंदोलन छेड़ दिया, जिसमे अन्ना का साथ मिला, किरण बेदी और VK सिंह भी साथ आये।
अन्ना ने राजनैतिक दल बनाने के लिए जनमतसंग्रह मांगा, जिसके जवाब में जनमत मिला कि इन्हें राजनैतिक दल बनाना चाहिए। इसने पार्टी बना ली, किरण बेदी ने कहा कि हमें राजनीति नही करनी, राजनीति कीचड़ है, उसकी बात सुनकर अन्ना के पैर उखड़ गए। आंदोलन धड़ाम हो गया। केजरीवाल फिर अकेला।
दिल्ली का चुनाव लड़ा, बहुमत नही आया।
सबसे ज़्यादा सीटें भाजपा की आई लेकिन वो सरकार बनाने से मुकर गई, फिर दबाव आया केजरीवाल पर, आखिरकार उसने अल्पमत की सरकार बनाई, कांग्रेस ने बाह्य समर्थन दिया, पार्टी के सौंपे समर्थनपत्र में कांग्रेस नही थी, कांग्रेसी सीधे LG को अपना समर्थन पत्र दे आये।
49 दिन सरकार चली, जिसके दौरान 35 सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जेल भेजे गए, शीला दीक्षित और अम्बानी पर FIR की गई, बिजली कंपनियों पर CAG का ऑडिट बिठा दिया। गौरतलब है कि तब ACB दिल्ली सरकार के अधीन थी।
फिर 49वें दिन जनलोकपाल पारित करते वक्त देखा कि जनलोकपाल के विरोध में भाजपा कांग्रेस एक हो गए, भाई की तरह। एक भ्रष्टाचारउन्मूलन कानून से इतनी एलर्जी?
इसने सरकार गिरा दी, फिर लोकसभा लड़ा। वहां बुरी हार हुई, ये खुद मोदी के सामने चुनाव लड़ा जहां अन्य पार्टियों ने टटपूंजिये खड़े किये थे।
कहने का मतलब कि चट्टान से भिड़ गए।
साढ़े 3 लाख फ़र्ज़ी वोटरों की बदौलत मोदी को जीत हासिल हुई। केजरीवाल हार गया।
फिर उसकी आलोचनाओं का दौर चला, भगोड़ा भगोड़ा कहते कहते मोदीभक्तों के मुंह से झाग गिरने लगे।
एकबारगी लगा कि केजरीवाल और पार्टी का अंत हो गया है।
लेकिन फिर लड़ा, और अबकी बार सबको रौंदकर 70 में से 67 सीटें जीती। लेकिन इस बार केंद्र ने दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित कर दिए, ACB छीन ली, LG को अड़चन लगाने की पूरी छूट दे दी। जाने क्या सोचकर और किसे बचाने के लिए।
हौसला चाहिए, हौसला, इतना उतार चढ़ाव किसी और के साथ हुआ होता तो राजनीति से तौबा कर गया होता।
RTI की बदौलत कांग्रेस के घोटाले उखाड़े जिनका नाम लेकर मोदी जैसों ने बड़े मंच पर अपनी राजनीति शुरू की।
कोई VIP नही था, कोई Z+ सुरक्षा नही थी, लेकिन मगरमच्छों से लड़ता रहा। ना अपनी परवाह की ना अपने परिवार की।
किसके लिए? देश के लिए।
संघर्ष यहीं नही रुका, बड़ा आंदोलन छेड़ दिया, जिसमे अन्ना का साथ मिला, किरण बेदी और VK सिंह भी साथ आये।
अन्ना ने राजनैतिक दल बनाने के लिए जनमतसंग्रह मांगा, जिसके जवाब में जनमत मिला कि इन्हें राजनैतिक दल बनाना चाहिए। इसने पार्टी बना ली, किरण बेदी ने कहा कि हमें राजनीति नही करनी, राजनीति कीचड़ है, उसकी बात सुनकर अन्ना के पैर उखड़ गए। आंदोलन धड़ाम हो गया। केजरीवाल फिर अकेला।
दिल्ली का चुनाव लड़ा, बहुमत नही आया।
सबसे ज़्यादा सीटें भाजपा की आई लेकिन वो सरकार बनाने से मुकर गई, फिर दबाव आया केजरीवाल पर, आखिरकार उसने अल्पमत की सरकार बनाई, कांग्रेस ने बाह्य समर्थन दिया, पार्टी के सौंपे समर्थनपत्र में कांग्रेस नही थी, कांग्रेसी सीधे LG को अपना समर्थन पत्र दे आये।
49 दिन सरकार चली, जिसके दौरान 35 सरकारी कर्मचारी और अधिकारी जेल भेजे गए, शीला दीक्षित और अम्बानी पर FIR की गई, बिजली कंपनियों पर CAG का ऑडिट बिठा दिया। गौरतलब है कि तब ACB दिल्ली सरकार के अधीन थी।
फिर 49वें दिन जनलोकपाल पारित करते वक्त देखा कि जनलोकपाल के विरोध में भाजपा कांग्रेस एक हो गए, भाई की तरह। एक भ्रष्टाचारउन्मूलन कानून से इतनी एलर्जी?
इसने सरकार गिरा दी, फिर लोकसभा लड़ा। वहां बुरी हार हुई, ये खुद मोदी के सामने चुनाव लड़ा जहां अन्य पार्टियों ने टटपूंजिये खड़े किये थे।
कहने का मतलब कि चट्टान से भिड़ गए।
साढ़े 3 लाख फ़र्ज़ी वोटरों की बदौलत मोदी को जीत हासिल हुई। केजरीवाल हार गया।
फिर उसकी आलोचनाओं का दौर चला, भगोड़ा भगोड़ा कहते कहते मोदीभक्तों के मुंह से झाग गिरने लगे।
एकबारगी लगा कि केजरीवाल और पार्टी का अंत हो गया है।
लेकिन फिर लड़ा, और अबकी बार सबको रौंदकर 70 में से 67 सीटें जीती। लेकिन इस बार केंद्र ने दिल्ली सरकार के अधिकार सीमित कर दिए, ACB छीन ली, LG को अड़चन लगाने की पूरी छूट दे दी। जाने क्या सोचकर और किसे बचाने के लिए।
हौसला चाहिए, हौसला, इतना उतार चढ़ाव किसी और के साथ हुआ होता तो राजनीति से तौबा कर गया होता।
और एक जाहिल के समर्थक आज केजरीवाल के व्यक्तित्व का आंकलन कर रहे हैं ..
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