● हम वो आखरी पीढ़ी हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं।
● हम वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है।
● हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे प्रोग्राम सुने हैं।
● हम ही वो आखिर लोग हैं, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!
हम एक मात्र वह पीढी है जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.
⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨
*ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है अतः मुझे अच्छी लगी सो मेने Post की
www.anxietyattak.com/2019/09/we-are-last-generation.html ⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨⌨
आइंस्टीन को न्यूटन बना दो. न्यूटन को आइंस्टीन बना दो. ऋषि को वैज्ञानिक बना दो, वैज्ञानिक को पंडा बना दो. कण्व को कलाम बनाम दो. कणाद को कबाड़ बना दो. धर्म दर्शन को गप्प बना दो, गप्प को धर्म और दर्शन दोनों बना दो. गांधी को गोडसे बना दो. गोडसे को महात्मा बना दो. विज्ञान को वेद बना दो. वेद और रामायण को अंतिम वैज्ञानिक सत्य बना दो. अर्थव्यवस्था को टम्पू बना दो. टम्पू को युद्धक विमान बना दो. जानवर को भगवान बना दो, इंसान को कचरा बना दो. अंतत: धर्म, आस्था, अर्थव्यवस्था, व्यवस्था सब कुछ को मजाक बना दो.
आपको क्या लगता है कि वे मूर्खता में ऐसा कर रहे हैं?
नहीं,
वे जानते हैं कि जनता का चूया कैसे काटना है.
या
तो मनोरंजन कराओ या तो पाकिस्तान के नाम हुर्रर्र बोलवाओ.
एक के बाद एक मंत्री अगर मूर्खता के कीर्तिमान कायम कर रहा है तो यह सोचा समझा कारनामा है.
मनोरंजन करो और उल्लू बनो.
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और नावेल पढ़े हैं।
● हम वही पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही बचपन गुज़ारा है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी, किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है।
● हम वो आखरी लोग हैं, जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।
● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़ की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है।
● हम निश्चित ही वो आखिर लोग हैं, जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो और बिनाका जैसे प्रोग्राम सुने हैं।
● हम ही वो आखिर लोग हैं, जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।
● हम वो आखरी पीढ़ी के लोग हैं, जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। हम ही वो खुशनसीब लोग हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!
हम एक मात्र वह पीढी है जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.
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*ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है अतः मुझे अच्छी लगी सो मेने Post की
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आइंस्टीन को न्यूटन बना दो. न्यूटन को आइंस्टीन बना दो. ऋषि को वैज्ञानिक बना दो, वैज्ञानिक को पंडा बना दो. कण्व को कलाम बनाम दो. कणाद को कबाड़ बना दो. धर्म दर्शन को गप्प बना दो, गप्प को धर्म और दर्शन दोनों बना दो. गांधी को गोडसे बना दो. गोडसे को महात्मा बना दो. विज्ञान को वेद बना दो. वेद और रामायण को अंतिम वैज्ञानिक सत्य बना दो. अर्थव्यवस्था को टम्पू बना दो. टम्पू को युद्धक विमान बना दो. जानवर को भगवान बना दो, इंसान को कचरा बना दो. अंतत: धर्म, आस्था, अर्थव्यवस्था, व्यवस्था सब कुछ को मजाक बना दो.
आपको क्या लगता है कि वे मूर्खता में ऐसा कर रहे हैं?
नहीं,
वे जानते हैं कि जनता का चूया कैसे काटना है.
या
तो मनोरंजन कराओ या तो पाकिस्तान के नाम हुर्रर्र बोलवाओ.
एक के बाद एक मंत्री अगर मूर्खता के कीर्तिमान कायम कर रहा है तो यह सोचा समझा कारनामा है.
मनोरंजन करो और उल्लू बनो.
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