गोली मार दी?
अच्छा किया. शाबाश!
अब एक कतार में
आशाराम
राम रहीम
चिन्मयानंद (वो तो भाग गया तुमको बनाकर)
कुलदीप सेंगर
(लिस्ट बहुत लंबी है)..
इन सबको खड़ा कर गोली मारो..
एक गोली इनके शिश्न पर
और एक इनके माथे पर
क्रूरतम तरीके से हत्या हो
फिर मज़ा आएगा
और एक इनके माथे पर
क्रूरतम तरीके से हत्या हो
फिर मज़ा आएगा
ये मैगी-नुमा इंसाफ सिर्फ गरीबों को ही क्यों मिले
इंसाफ के हकदार सभी हैं..
या फिर अमीरों/रसूखदारों/गुंडों को देख
तुम्हारा इंसाफ़ कोने में दुबक जाता है
और तुम्हारी सिंघमगिरी हवा हो जाती है?
बोलो सिंघम
ध्यान दें: मैं बलात्कारियों के समर्थन में कतई नहीं हूँ. उन्हें सज़ा मिले, फांसी हो, या चौराहे पर गोली मारी जाए. लेकिन अगर कानून को यूं ही ताक़ पर रखा जाना है, तो फिर यह सभी के लिए हो, मौका देखकर हीरो बनने की कोशिश में किया गया यह दोगलापन दिखाकर हम कैसा उदाहरण स्थापित कर रहे हैं. भीड़तंत्र ही देश को चला रहा है तो फिर सरकार और कानून की क्या ज़रूरत है.