Engineer Suresh Holkar Atal Setu Mumbai
Engineer Suresh Holkar stopped his car on Atal Setu Mumbai and jumped into the sea and died.
Suresh Holkar has a wife and a 4-year-old daughter. 38-year-old Suresh Holkar lived in Dombivali. Suresh Holkar committed suicide, but he created so many problems for his wife and daughter.
Imagine, he lived in a flat, used to drive a car, but was also burdened with debt. An engineer could have earned enough to feed three people. But he gave up on life.
The middle class so-called educated youth living in the city is the most affected by mental stress in today's times. The youth, eager to live a life of show-off, is so much a victim of over-ambition that he starts getting burdened with debt to live a life of show-off in the society, to show his false pride among his friends.
The illusion of credit card and EMI shows daydreams of material comforts. Expensive flats are available at 0 advance after spending a few years in metros. The builder takes his money and goes away and the bank EMIs start.
Everything for the decoration and comfort of the flat is available on EMI. But when the process of paying the installments starts, neither the comfort of the flat is available nor the decorative items.
The daydream of a fake life has made the lives of these youth hell the most. The desire to live a life of pretense traps one in such a trap that thinks about ending life itself.
If Suresh Holkar had discussed with his family, his friends, then some way could have been found. His wife and daughter would probably not have been helpless. But Suresh Holkar, who was suffocating inside, found it easier to choose death by rejecting life.
In the digital age, we have become separated from society. Separated from family. Stopped discussing with our loved ones. Where is this lonely life taking us?
इंजीनियर सुरेश होल्कर ने अटल सेतु मुंबई पर अपनी कार रोकी और समुद्र में कूदकर जान दे दी।
सुरेश होल्कर की पत्नी और 4 साल की बेटी है। 38 साल का सुरेश होल्कर डोंबिवली में रहता था। सुरेश होल्कर ने खुद को समाप्त कर लिया, लेकिन अपनी पत्नी और बेटी के लिए कितनी मुसीबत खड़ी कर गया।
सोचिए वह फ्लैट में रहता था, कार से चलता था, किंतु कर्ज के बोझ तले भी दबा हुआ था। एक इंजिनियर इतना तो कमा ही सकता था तीन लोगो का पेट पाल सके। लेकिन वह जीवन से हार मान गया।
शहर में रहने वाला मध्यमवर्गीय कथित शिक्षित युवा आज के दौर में सबसे अधिक मानसिक तनाव का शिकार है। दिखावे की जिंदगी जीने को लालायित युवा अति महत्वाकांक्षा का इतना शिकार है कि समाज में दिखावे की जिंदगी जीने के लिए, अपने दोस्तों के बीच अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कर्ज के बोझ तले दबने लगता है।
क्रेडिट कार्ड और ईएमआई का भ्रमजाल भौतिक सुख सुविधा का दिवा स्वप्न दिखा देते हैं। महानगरों में चंद साल व्यतीत करने पर 0 एडवांस पर महंगे फ्लैट उपलब्ध हैं। बिल्डर अपना पैसा लेकर किनारे हो जाते हैं और बैंक की ईएमआई शुरू हो जाती है।
फ्लैट की सजावट सुख सुविधा के लिए सबकुछ ईएमआई पर उपलब्ध है। लेकिन जब किस्त भरने का सिलसिला शुरू हो जाता है तो न फ्लैट का सुख मिलता है और न ही सजावटी सामानों का।
बनावटी जीवन का दिवा स्वप्न सबसे अधिक इन्हीं युवाओं के जीवन को नर्क बनाया है। दिखावे की जिंदगी जीने की चाहत एक ऐसे जाल में फांस लेती है जो जिंदगी को ही खत्म करने के बारे में सोचती है।
सुरेश होल्कर यदि अपने परिवार से, अपने मित्रों से चर्चा करता तो कोई रास्ता निकल सकता था। उसकी पत्नी और बेटी शायद बेसहारा नहीं होती। लेकिन अंदर ही अंदर घुट रहे सुरेश होल्करको जिंदगी को नकार कर मौत चुनना ही आसान लगा।
डिजिटल युग में हम समाज से अलग हो गए। परिवार से अलग हो गए।
अपनो से विचार विमर्श करना छोड़ दिए।
यह एकांकी जीवन आखिर हमें किस ओर ले जा रहा है।
इंजीनियर सुरेश होल्कर ने अटल सेतु मुंबई पर अपनी कार रोकी और समुद्र में कूदकर जान दे दी।
सुरेश होल्कर की पत्नी और 4 साल की बेटी है। 38 साल का सुरेश होल्कर डोंबिवली में रहता था। सुरेश होल्कर ने खुद को समाप्त कर लिया, लेकिन अपनी पत्नी और बेटी के लिए कितनी मुसीबत खड़ी कर गया।
सोचिए वह फ्लैट में रहता था, कार से चलता था, किंतु कर्ज के बोझ तले भी दबा हुआ था। एक इंजिनियर इतना तो कमा ही सकता था तीन लोगो का पेट पाल सके। लेकिन वह जीवन से हार मान गया।
शहर में रहने वाला मध्यमवर्गीय कथित शिक्षित युवा आज के दौर में सबसे अधिक मानसिक तनाव का शिकार है। दिखावे की जिंदगी जीने को लालायित युवा अति महत्वाकांक्षा का इतना शिकार है कि समाज में दिखावे की जिंदगी जीने के लिए, अपने दोस्तों के बीच अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कर्ज के बोझ तले दबने लगता है।
क्रेडिट कार्ड और ईएमआई का भ्रमजाल भौतिक सुख सुविधा का दिवा स्वप्न दिखा देते हैं। महानगरों में चंद साल व्यतीत करने पर 0 एडवांस पर महंगे फ्लैट उपलब्ध हैं। बिल्डर अपना पैसा लेकर किनारे हो जाते हैं और बैंक की ईएमआई शुरू हो जाती है।
फ्लैट की सजावट सुख सुविधा के लिए सबकुछ ईएमआई पर उपलब्ध है। लेकिन जब किस्त भरने का सिलसिला शुरू हो जाता है तो न फ्लैट का सुख मिलता है और न ही सजावटी सामानों का।
बनावटी जीवन का दिवा स्वप्न सबसे अधिक इन्हीं युवाओं के जीवन को नर्क बनाया है। दिखावे की जिंदगी जीने की चाहत एक ऐसे जाल में फांस लेती है जो जिंदगी को ही खत्म करने के बारे में सोचती है।
सुरेश होल्कर यदि अपने परिवार से, अपने मित्रों से चर्चा करता तो कोई रास्ता निकल सकता था। उसकी पत्नी और बेटी शायद बेसहारा नहीं होती। लेकिन अंदर ही अंदर घुट रहे सुरेश होल्करको जिंदगी को नकार कर मौत चुनना ही आसान लगा।
डिजिटल युग में हम समाज से अलग हो गए। परिवार से अलग हो गए। अपनो से विचार विमर्श करना छोड़ दिए। यह एकांकी जीवन आखिर हमें किस ओर ले जा रहा है। साभार
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