व्यापार के हालात पर आधारित कविता
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ना खरीद पाता हूँ
ना बैच पाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ....
ना बना पाता हूँ
ना बैच पाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
पैमैन्ट की मांग करू तो रिटर्न गुडर्स की टैंशन
कैसे करू अपना धन्धा मैन्टैन
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
होलसेल हो या रिटेल
मन्दी मे सब फेल
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
गद्दी पे चढकर बैठ जाता हूँ
बैठे बैठे क्या करता हूँ
थोड़ा इधर उधर करता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
दिनभर की भेजामारी
मन्दी पड रही भारी
माल बिक नही रहा फरसाण के रेट में
इतना सब हो रहा सभी के व्यापार मे
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
कैटलोग और ओनलाईन व्यापार ने वाट लगा दी धन्धे की.....
जय बोलो इनकी.....
वर्करों का रोना देख
मै अपना आंसु पी जाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ....
दिनभर मैं बोहनी नहीं कर पाता हूँ
चाय - पानी भारी पड रहा
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
व्यापार का सफर है सुहाना
यहां कल क्या होगा किसने जाना...
भूल कर भी अपने बच्चों को अब व्यापारी मत बनाना...
पेमेंट नही आती तो घर मे भी चिड़चिड़ा हो जाता हूँ
अपने हर खर्चे पर लगाम लगता हूँ
पर
कई बार घर से पैसे निकाल कर INCOME TAX और GST भर आता हूँ
बस इसी उम्मीद के साथ मैं रोज मार्केट
चला आता हूँ ....की शायद अपना टाइम फिर आएगा
................................................. समस्त व्यापारी वर्ग
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ना बैच पाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ....
ना बना पाता हूँ
ना बैच पाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
पैमैन्ट की मांग करू तो रिटर्न गुडर्स की टैंशन
कैसे करू अपना धन्धा मैन्टैन
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
होलसेल हो या रिटेल
मन्दी मे सब फेल
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
गद्दी पे चढकर बैठ जाता हूँ
बैठे बैठे क्या करता हूँ
थोड़ा इधर उधर करता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
दिनभर की भेजामारी
मन्दी पड रही भारी
माल बिक नही रहा फरसाण के रेट में
इतना सब हो रहा सभी के व्यापार मे
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
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जय बोलो इनकी.....
वर्करों का रोना देख
मै अपना आंसु पी जाता हूँ
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ....
दिनभर मैं बोहनी नहीं कर पाता हूँ
चाय - पानी भारी पड रहा
फिर भी ना जाने क्यों
मैं रोज मार्केट चला जाता हूँ ...
व्यापार का सफर है सुहाना
यहां कल क्या होगा किसने जाना...
भूल कर भी अपने बच्चों को अब व्यापारी मत बनाना...
पेमेंट नही आती तो घर मे भी चिड़चिड़ा हो जाता हूँ
अपने हर खर्चे पर लगाम लगता हूँ
पर
कई बार घर से पैसे निकाल कर INCOME TAX और GST भर आता हूँ
बस इसी उम्मीद के साथ मैं रोज मार्केट
चला आता हूँ ....की शायद अपना टाइम फिर आएगा
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