Success depends on your Feelings

There was a temple.
Everyone in it used to work on the salary.
Aarti, worshiper,
The hourlong was also on the salary ...

The person playing the clock used to be so absorbed in the time of the Aarti, that he was not conscious.
The hour-player used to do his own work of whole devotion.
All those who came in the temple used to see the expressions of the person playing with God, and he was also wow ...

One day the temple trust changed and the new trustee issued an order that works in his temple,
Everyone must be educated.
Those who have not been educated will be removed.

Trustee said to the hour-long brother, 'Take your salary till today, from now on you do not come on a job.'
The person who played that hour said, "Even though I have not read the sahab, but this work is connected to my heart!"
Trustee said, "Listen, you are not read, so you will not be able to keep ..."

On the second day, the people kept the new people in the temple, but the people who came in the Aarti did not enjoy it as before.
Some people went to the house of the person playing the clock and requested that you come to the temple.

The brother responded, "If I come, the trustee will come to take a job, so I can not come."

The people who came there said a remedy that 'open a shop for you in the front of the temple, there you have to sit and there will be time to play during the aarti, then no one will say that you need a job ....'

The brother started the shop in front of the temple.
He went so far as to open a factory with many shops and shops from a shop.
Now that man came to play with the Mercedes for hours.

Time passed, it became obsolete.
The trustee of the temple then changed.
There was a need for a new trust to build a new temple.

The new trustee of the temple came to know the first thing to talk to the owner of that factory.

The Trustee owner has had seven lakh rupees. Told the factory owner.

The owner of the factory gave an empty check to the trustee without asking any questions and said, check the trustee filling the check and returning that factory owner back. The factory owner saw the check and gave it to that trustee.

The trustee took the check and said "Signature is there".
The owner said that I do not have to sign, bring a thumb, "that will run ..."

* He listened to the Trustee Chowk and said, "Sir, if you were educated then what would have been ... even if you were illiterate ... !!!"

So he laughed Seth,
"Brother, if I had read, I would have just been ringing in the temple"

Summary :-
Whatever the work, whatever the situation, your success depends on your feelings.
If the emotions are pure, then God and the beautiful future will definitely be with you
  







    
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  • एक मन्दिर था ।
    उसमें सब लोग पगार पर काम करते थे।
    आरती वाला, पूजा कराने वाला,
    घण्टा बजाने वाला भी पगार पर था...

    घण्टा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव के साथ इतना मशगुल हो जाता था, कि होश में ही नही रहता था।
    घंटा बजाने वाला व्यक्ति पूरे भक्ति भाव से खुद का काम करता था। 
    मन्दिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के साथ साथ घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे, उसकी भी वाह वाह होती थी...

    एक दिन मन्दिर का ट्रस्ट बदल गया और नये ट्रस्टी ने ऐसा आदेश जारी किया कि अपने मन्दिर में काम करते,
    सब लोग पढ़े लिखे होना जरूरी है।
    जो पढ़े लिखे नही है उन्हें निकाल दिया जाएगा।

    उस घण्टा बजाने वाले भाई को ट्रस्टी ने कहा कि 'तुम्हारे आज तक का पगार ले लो, अब से तुम नौकरी पर मत आना.'।
    उस घण्टा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा, "साहब भले मैं पढ़ा लिखा नही हूँ, परन्तु इस कार्य मैं मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है!"
    ट्रस्टी ने कहा,"सुन लो तुम पढ़े लिखे नही हो, इसलिए तुम्हे रख नही पायेंगे..."

    दूसरे दिन मन्दिर में नये लोगो को रख लिया, परन्तु आरती में आये लोगो को अब पहले जैसा मजा नही आता था, घण्टा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी।
    कुछ लोग मिलकर घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए और विनती की, कि तुम मन्दिर आओ।

    उस भाई ने जवाब दिया, "मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा नौकरी लेने के लिए आया है इसलिए आ नहीं सकता हूँ"

    वहां आये हुए लोगो ने एक उपाय बताया कि 'मन्दिर के सामने आपके लिए एक दुकान खोल कर देते है, वहाँ आपको बैठना है और आरती के समय घण्टा बजाने आ जाना, फिर कोई नही कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है।..."

    उस भाई ने मन्दिर के सामने दुकान शुरू की। 
    वो इतनी चली कि एक दुकान से कई दुकान और दुकानों के साथ में एक फेक्ट्री भी खोली।
    अब वो आदमी मर्सिडीज़ से घण्टा बजाने आता था ।

    समय बीतता गया, ये बात पुरानी सी हो गयी। 
    मन्दिर का ट्रस्टी फिर बदल गया .
    नये ट्रस्ट को नया मन्दिर बनाने के लिए दान की जरूरत थी।

    मन्दिर के नये ट्रस्टी को विचार आया सबसे पहले उस फेक्ट्री के मालिक से बात करके देखते है ..

    ट्रस्टी मालिक के पास गया सात लाख का खर्चा है। फेक्ट्री मालिक को बताया।

    फैक्ट्री के मालिक ने कोई सवाल किये बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया और कहा चैक भर लो ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापस दिया । फैक्ट्री मालिक ने चैक को देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।

    ट्रस्टी ने चैक हाथ में लिया और कहा सिग्नेचर तो बाकी है"।
    मालिक ने कहा मुझे सिग्नेचर करना नही आता है लाओ अंगूठा लगा देता हूँ "वही चलेगा ..."

    *ये सुनकर ट्रस्टी चौक गया और कहा, "साहब तुम अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की की यदि पढे लिखे होते तो कहाँ होते ...!!!"

    तो वह सेठ हँसते हुए बोला,
    "भाई, मैं पढ़ा लिखा होता तो बस मन्दिर में घण्टा बजा रहा होता"

    सारांश :-
    कार्य कोई भी हो, परिस्थिति कैसी भी हो, तुम्हारी सफलता तुम्हारी भावनाओ पर निर्भर करती है ।

    भावनायें शुद्ध होगी तो ईश्वर और सुंदर भविष्य पक्का तुम्हारा साथ देगा