हर नफ्स को मौत का ज़ायका चखना है
मगर श्रीदेवी जी तुम्हारा यूं जाना दुखी कर गया। तुम वो एक्ट्रेस थीं, जिनके साथ सेल्फी लेना चाहता था। एक डायरी में ऑटोग्राफ रखना चाहता था
मुझे याद है जब मैं पांचवीं क्लास में था तो उम्र महज 9 साल थी। तब अखबारों में कैलेंडर छपता था। उस कैलेंडर के साथ पूरे एक पेज पर हीरोइन की तस्वीर छपती थी। तब एक बार तुम्हारी तस्वीर भी छपी थी। मेरे घर अखबार भी नहीं आता था। मोहल्ले से वो सारे अखबार समेट लाया था
जिसमें तुम छपी थीं। जिस पन्ने पर तुम थीं, अखबार के उन पन्ने को निकालकर कई सालों तक सहेजकर रखा था
तुम्हारी आंखें नमकीन समुंदर की मानिंद। शफ़्फ़ाफ़ चेहरा। लगता था आंखों को ज्यादा देर देखा तो वो सफ़्फ़ाक बन जाएंगी।
मेरे नानी के घर एक भैंस और दो कटिया थीं, उनको चराने पास के कब्रिस्तान ले जाता था। भैंस चराने के दौरान मैं होता था, तुम्हारी फिल्मों के गाने होते थे।
ऐ जिंदगी गले लगा ले,
हमने भी तेरे हर एक गम को गले लगाया है, है ना
कई बार तो ऐसा हुआ कि तुम्हारे बारे में ख्याली फिल्म बुनते-बुनते, कब सुबह से दोपहर हो गई और कब दोपहर से शाम पता नहीं चला। घर वाले कहते इसे तो बस भैंसे चराने पर छोड़ दो। भैंसे चरती थीं और मैं तुम्हारे गाने गुनगुनाता था। और लोग भी भैंस चराने आते थे, मगर मैं उनसे अलग बैठ जाता था। या भैंस को तालाब में ले जाने की बात कहकर उन लोगों से दूर ले जाता था। ये अक्सर होता था। तुम्हारे इश्क़ की गिरफ्तारी का असर था
उस लड़कपन में दो मौके ऐसे भी आए जब तुम्हारे लिए मार भी खाई।
पहला मौका था जब अखबार वाला तुम्हारा पोस्टर अपनी होमवर्क वाली काॅपी पर जिल्द की तरह चढ़ा लिया था, कि तुम मेरे साथ रहोगी। मास्टर साब उस जिल्द को देखकर बुरी तरह गुस्सिया गए।
पता नहीं तुम्हारे पोस्टर ने उनपर क्या बिजली गिराई थी कि उन्होंने गंगाराम (डंडे को वो गंगाराम कहते थे) उठाया और धुनाई कर दी।
हाथ सुर्ख हो गए। तशरीफ भी सुजा दी। और मास्टर साब ने क्लास में ऐलान किया कि कोई भी अपनी काॅपी किताबों पर अखबार नहीं चढ़ाएगा, बल्कि दुकान से जिल्द वाला पेपर खरीद कर चढ़ाएगा। पढ़ने आते हो या अखबार की अधनंगी तस्वीरें देखने। तब मैं बहुत रोया था, इसलिए नहीं कि मेरी पिटाई हुई थी बल्कि इसलिए क्योंकि तुम्हारा पोस्टर उस जल्लाद मास्टर ने फाड़ दिया था।
दूसरी बार पिटाई तब हुई जब मैंने तुम्हारी "जुदाई" देखी। शुक्रवार को दूरदर्शन पर 9 बजे तुम्हारी फिल्म आनी थी। घर पर टीवी नहीं था। गांव में लाइट की भी दिक्कत थी पता किया कहां बैट्री का इंतजाम होगा ताकि फिल्म देखी जा सके। पड़ोस में टीवी था, लेकिन बैट्री नहीं थी। तो पड़ोस से थोड़ा दूर एक घर में रात में फिल्म देखने चला गया। अपने घर पर नहीं बताया था। घर वाले ढूंढते फिरे। और जब घर वालों को पता चला तो घर वाले वहीं पहुंच गए। मारते हुए घर वापस ले आए। इस बार फिर खूब रोया, फिल्म जो नहीं देख पाया था।
सुबह में चाय नहीं पी। गुस्से में स्कूल नहीं गया।
पहली बार मुझे बाॅलीवुड की किसी हस्ती की मौत पर इतना दुख हुआ। काश ये कार्डियक अरेस्ट एक फिल्मी सीन होता। और तुम उठकर मौत के फरिश्ते से कहतीं, 'किसी के हाथ न आएगी ये लड़की
तुम हवा हवाई थीं, 'चांदनी' थीं, 'नगीना' थीं, जिनपर 'निगाहें' नाज़ करती थीं काश वो 'लम्हें' ठहर जाते तो मौत का "सदमा" न लगता। 'खुदा गवाह' है तुम्हारी 'जुदाई' ने 'घर संसार' को दुखी कर दिया। काश तुम 'चालबाज' 'कलाकार' होतीं और मौत को 'गुमराह' करके 'मिस्टर इंडिया' की तरह आतीं।
...छोटा सा साया था आंखों में आया था
हमने दो बूंदों से मन भर लिया
हमको किनारा मिल गया है जिंदगी.... ऐ जिंदगी गले...
सच में तुम्हें किनारा मिल गया है श्रीदेवी,
और जिंदगी ने तुम्हें गले भी लगा लिया है।
अलविदा मिस हवा हवाई
भाई कोई शेयर ना करना दिल दुख रहा